My sketchings

शायरी



                 तेरे प्यार मे कही हर गज़ल पर जमाना रुस्वाइयां देता था
               तेरे जाने के बाद ये मन्जर है कि खामोशी भी सबको शायरी सी लगती है
                             - एकता नाहर 

शायरी


हुनर की जब बात उठी है तो वो भी देखले
कौन कितने पानी में है, हो जाएँ फैसले
- एकता नाहर 

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ

मैं साकार कल्पना हूँ
मैं जीवंत प्रतिमा हूँ
मैं अखंड अविनाशी शक्तिस्वरूपा हूँ


मैं जननी हूँ,श्रष्टि का आरम्भ है मुझसे
मैं अलंकार हूँ,साहित्य सुसज्जित है मुझसे

मैं अलौकिक उपमा हूँ
मैं भक्ति हूँ,आराधना हूँ
मैं शाश्वत,सत्य और संवेदना हूँ

मैं निराकार हूँ,जीवन का आकार है मुझसे
मैं प्राण हूँ,सृजन का आधार है मुझसे

मैं नीति की संज्ञा हूँ
मैं उन्मुक्त आकांक्षा हूँ
मैं मनोज्ञा मंदाकिनी मधुरिमा हूँ

मैं अनर्थ को अर्थ देती परिकल्पना हूँ
मैं असत्य अधर्म अन्धकार की आलोचना हूँ

मैं अनंत आकाश की अभिव्यक्ति हूँ
मैं सहनशील हूँ समर्थ हूँ,मैं शक्ति हूँ

मेरा कोई रूप नहीं दूसरा
मैं स्वयं का प्रतिबिम्ब हूँ
मेरा कोई अर्थ नही दूसरा
मैं शब्द मुक्त हूँ मैं पूर्ण हूँ
मैं नारी हूँ


-एकता नाहर 

A story behind my sketching...

A story behind my sketching...

sketching करना मेरे लिए एक प्रकृति प्रदत्त उपहार है !यह मेरे जीवन में बहुत ही रोमांचक और प्रशंसनीय अनुभव रहा है ! इसकी शुरुआत के पीछे  एक छोटी सी कहानी है !बात शायद २००३ की है....उस समय हिंदी फिल्म देवदास काफी प्रचलन में थी ! जिसमे ऐश्वर्या राय बच्चन का पहनावा और श्रृंगार एक बेन्गौली लड़की के रूप में था ! मैंने उसी getup में ऐश्वर्या का एक स्केच देखा ! उस समय ऐश्वर्या राय बच्चन, ऐश्वर्या राय हुआ करती थी ! मुझे बात समझने में थोड़ी मुश्किल लग रही थी की कोई किसी का चेहरा कैसे बना सकता है ! यह बात उस वक़्त मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं थी ! उससे पहले तक तो मैंने सिर्फ सिर्फ घर,गाँव, कार्टून,और गाँधी जी का ही फोटो बनाया था ! बस वही स्केच मेरी प्रेरणा बन गया और एक जज्वा और जूनून सा आ गया की मुझे भी किसी का चेहरा बनाना है...मैंने शुरुआत की एक बच्चे के चेहरे से ! बच्चो के चेहरे के हाव भाव मुझे हमेशा से ही लुभाते रहे हैं ! मेरी पहली कोशिश सफल रही......

उसके बाद मैंने कई अन्य sketch बनाए...
स्केचिंग करते अभी थोडा सा ही वक़्त गुजरा था कि अब जिद थी कि किसी सेलेब्रिटी की ही स्केच बनाना है...विशेषज्ञों का मानना है की किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए उस काम की बारीकियो को समझना बेहद जरूरी है...पर मेरे अन्दर हमेशा से ही धैर्य की कमी रही है...इसीलिए मैंने......
                               क्रमशः:
(अगले अंक में रूबरू मेरे स्केचिंग करने के दौरान आये उतार चढाओं से.)

**१८५७ की क्रांति**

हिंदी फिल्म knock out  के एक दृश्य में संजय दत्त द्वारा इरफ़ान खान को कहा गया कि २५० साल की हूकूमत में अंग्रेजो ने हमसे १ लाख करोड़ लूटा था और सिर्फ ६० साल में हमारे नेताओं ने हमसे ७० लाख करोड़ लूटा है ...
अगर ये बात सच है तो फिर क्या कहना मुनासिब होगा...???
क्या फिर से गांधी,सुभाष,भगतसिंह जैसी महान विभूतियों के पुनर्जनम की आवश्यकता है या हम ही कोई कदम उठायेगे...???

**१८५७ की क्रांति**

मैंने नहीं देखी १८५७ की क्रान्ति
पर देखी है देश मै फैली भ्रान्ति
सत्याग्रह आन्दोलन नहीं देखा
शायद दोहराएगा इतिहास अपना लेखा
आज फिर स्वदेश प्रेमी
सच्चे भारतीय
सच्चे देशभक्त
विद्रोह करेंगे
देश पे मरेंगे
पर यह विद्रोह नहीं होगा औरों से
यह विद्रोह होगा देश के सत्ताखोरों से
आज हर आम व्यक्ति गांधी होगा
जो लडेगा अधिकारों के लिए
बनेगा सजा गुनाहगारो के लिए
अब हिन्दुस्तानी लडेगा हिन्दुस्तानी से
क्रांति की ये अग्नि नहीं बुझेगी पानी से
हर युवा सावधान होगा
जाग्रत होगी नयी ज्वाला
शायद फिर एक १८५७ की क्रान्ति
बदल दे कल आने वाला

--एकता नाहर 

चाटुकारिता - सफलता का नया मूलमंत्र

चाटुकारिता - सफलता का नया मूलमंत्र 
(व्यंग्य) 

समाज में कैसे बदलाव आयेगा यह कह पाना तो मुश्किल है पर सच तो यह है कि सफलता जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही महत्वपूर्ण यह बात भी कि वह कैसे और कहाँ से मिलती है ! चाटुकारिता से सफलता के वृक्ष में डालियाँ तो आ सकती हैं पर ये डालिया लम्बे समय तक वृक्ष को हरा भरा नहीं रख सकती क्योकि सफलता का मूल को तो परिश्रम और हुनर से ही सींचा जा सकता है !
   -एकता नाहर 


चाटुकारिता विभिन्न गुणों से समाहित सफलता का खरा मूलमंत्र है ! ऐसा नहीं है कि आपको इसके लिए परिश्रम नहीं करना पड़ता ! आपको अपने लक्ष्य निर्धारित करने पड़ते हैं, अपने से उच्च अधिकारियों के इर्द-गिर्द घूमना पड़ता है , उन्हें अपने जिम्मेदार,परिपक्व और कुशल होने की अनुभूति करानी होती है! साथ ही उन्हें सम्मान के सर्वोच्च सिंहासन पर आसीन कराना होता है ! यह सारी क्रियाएं जितनी रफ़्तार से होती हैं उसी के अनुरूप सफलता भी अपनी प्रतिक्रियाएं देती है ! हाँ, चाटुकारिता के इस सिध्दांत में नियमो कि कोई व्याख्या नहीं होती ! इसे सब अपने-अपने अनुसार इस्तेमाल करते हैं!चाटुकारिता और सफलता एक दुसरे के समानुपाती चलते हैं...यह बिलकुल भौतिकी के सिध्दांत की तरह कार्य करता है!
                                         सफलता के व्यवसाय में जितनी चाटुकारिता रुपी पूँजी निवेश करेंगे उतनी ही सफलता मिलेगी! पर सफलता कभी पर्याप्त नहीं होती..इसीलिए चाटुकारिता भी कभी कभी अपने असीम छोर को छू लेती है ! चाटुकारों का मानना है कि यह कोई घाटे का सौदा नहीं है! हाँ जब कभी इस व्यवसाय के तराजू में असंतुलन हो जाता है!अधिकतम चाटुकारिता निवेश करने पर भी सफलता के परिणाम सामने नही आते !पर समयानुसार ये उतार चदाव भी स्थिर हो जाते हैं !सबसे अच्छी बात तो यह है कि इसे सीखने में समय भी खर्च नहीं करना पड़ता !सभी अपने अपने स्तर पर सफलता के रूप को चाटुकारिता के रंग से निखारने में लगे रहते हैं ! आलम यह है कि छोटे-छोटे देश भी अमेरिका जैसे बड़े देशो कि चापलूसी में लगे रहते हैं !
                                         चाटुकारों में आत्मविश्वास का कतई अभाव नहीं होता! वे अपने से उच्च अधिकारियों को प्रभावित करने के हर हथकंडे अपनाते हैं ! दिलचस्प बात तो ये है कि वे व्यक्ति को चरित्र के अनुसार नहीं बल्कि उनके पद के अनुसार उनके सम्मान का स्तर निर्धारित करते हैं ! वे खुद को एक अच्छे और सच्चे सहयोगी साबित करने में माहिर होते हैं ! वे इस बात को भलीभाँति समझते हैं कि अपने से उच्च अधिकारियों से व्यवहार बनाकर ही मनोवांछित कार्य किये जा सकते हैं और भविष्य को लाभान्वित किया जा सकता है ! वे समय की जरूरतों के मुताबिक अपनी कार्यशैली में परिवर्तन भी करते रहते हैं ! वे उदासीन और अंतर्मुखी कदाचित नही होते ! वे यह समझने में बड़े ही बुध्दिजीवी होते हैं कि उनकी सफलता का निर्णय किसके हाथ में है ! जब उन्हें एक पक्ष से संतुष्टि नहीं होती तब वे किसी दुसरे पक्ष को तलाश करते हैं !
                                          मजे की बात तो यह है कि सफलता के धंधे में इतनी चाटुकारिता निवेश करने के बाद भी कोई अपने आप पर  ' चाटुकार ' का लेवल नहीं लगवाना चाहता ! वे इस धंधे में अपना नाम हमेशा गुप्त रखने की कोशिश करते हैं ! वे चाटुकारिता की नीति के तहत गुप्त रूप से ही सफलता के पक्ष में अपनी याचिका लगाते हैं !
                                आधुनिक युग में चाटुकारिता चुम्बक की तरह सफलता को निरंतर अपनी और आकर्षित कर रही है ! वर्तमान हालातों की समीक्षा करें तो चाटुकार अल्पसंख्यक नहीं हैं ! यह व्यवसाय राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है! यह राजनीति की तकनीक ही है जिसका इस्तेमाल लोग उपलब्धियां हासिल करने में करते हैं ! वर्तमान में ' परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ' का स्थानान्तरण ' चाटुकारिता ही सफलता की कुंजी है ' से होता जा रहा है !हर तरफ लोग मेहनत, लगन और ईमानदारी से काम करने की बजाय चाटुकारिता को निचोड़ कर सफलता का रस चखना चाहते हैं ! समाज में कैसे बदलाव आयेगा यह कह पाना तो मुश्किल है पर सच तो यह है कि सफलता जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही महत्वपूर्ण यह बात भी कि वह कैसे और कहाँ से मिलती है ! चाटुकारिता से सफलता के वृक्ष में डालियाँ तो आ सकती हैं पर ये डालिया लम्बे समय तक वृक्ष को हरा भरा नहीं रख सकती क्योकि सफलता का मूल को तो परिश्रम और हुनर से ही सींचा जा सकता है !
-एकता नाहर

शायरी



           न करते ग़ुरूर हम भी यूँ अपने हुस्न पर
          ग़र ज़लवे हमारे देखकर वो मदहोश न होते
            -एकता नाहर 

शायरी


राहो मे खोने से किसको भला डर है

साथ मेरे चल रहा जब मेरा हमसफ़र है

मन्जिलो से बेपरवाह मुसाफ़िर है हम

हमको तो मुताक्बिक* हमारे ये सफ़र है


-एकता नाहर

मुताक्बिक-comfortable,suitable

ईद मुबारक


निखरे हैं रंग सभी मेंहदी के फिज़ाओं में

ये ईद की खुशबू है फैली आज इन हवाओं में

कल रात जब चाँद उतरा मेरे आँगन में

सारे जहां के लिए ख़ुशी मैंने माँग ली दुआओं में

-एकता नाहर


बैर और अलगाव से ऊपर रहे हर भावना
नफ़रतो का आपस में न रहे नामोनिशां

ज़र्रा ज़र्रा महक उठे ख़ुशियों से मेरे मुल्क का
यहीं ईद का पयाम है,है यही मेरी कामना

-एकता नाहर

ईद मुबारक

शायरी

कहता है दुश्मन हमसे कि पूरी तैयारी से आना
अंदाज़ नहीं नादां को हमारे तासीर*-ए-दीदार का 
-एकता नाहर 
तासीर - effect

I wrote this poem in 8th class....

I wrote this poem in 8th class....


नई सोच और नई आशाये चलती हू मै रचने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को

मेरा मन भी कहता है मैं भी अपने भाव लिखूँ
अपनी वेदना अपनी पीड़ा कागज कलम के साथ सहूँ
फिर आज कलम में उठती हूँ अपने घाव भरने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को

ना रांझा ना हीर की ना ही अर्जुन के तीर की
सबसे पहले में लिखूँ गाथा देश के वीर की
अपना द्रष्टिकोण अपने विचार दो शब्दों में रंगने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को


दिल मे बस यही है ख्वहिश मै कुछ ऐसा प्रयत्न करू
न तलवार से न बन्दूक से बस कलम से मै जंग लडू
जिसने जोश दिया था सबको फ़िर वही वन्देमातरम रचने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
-एकता नाहर 


My new sketch & some lines


नन्हा बालक खेल कर
धरकर रूप कन्हैया को

 देख लाल की अटखेली
झूम उठो मन मैया को

-एकता नाहर 




गजल

खौफ के मंजर 



रात की ख़ामोशी देती इस बात की गवाही है
शहर में आने वाली फिर कोई नई तबाही है

 सहमा-सा है हर मंज़र सनसनी-सी है फैली हुई
सुनसान रास्तों पे खड़ा कोई आतंक का राही है

यह सीमा पार के हमले हैं या अपनों की साज़िश
सारी रात कश्मीर ने इसी सोच में बिताई है

ज़ंग-ए-मैदान में पल-पल छलनी हो रहे सीने
मौत के सामानों ने ये कैसी होड़ मचाई है

‘एकता' अब तुमको भी हथियार उठाने होंगे
अब फ़ीकी पड़ने लगी तुम्हारी कलम की स्याही है!

          -एकता नाहर
   
           I am dedicating this poem to all my brother & sister of Kashmir.
           Jai hind

शायरी

न मिली  कलम तो हिम्मत ही सही,
पर तीर और तलवार की हमें जरुरत नहीं!
हौसले जो ज़िगर में हरदम बरक़रार हैं,
उनको मिटाने की किसी में ज़ुर्रत नहीं!
 -एकता नाहर
    

Who is he???

Who is he???

Who is he???
............
He is not any part of my life.
He is not any end or start of my life.
He is the heart of my life....
I m infinite...no one can reach till my end...
but...
I am zero in front of him.
.............

whenever I get angry,he makes me feel relax.
whenever I get confused,he gives me thousand solutions.
Whenever I lose in my life,he holds my hand & makes me feel that I m a winner.
.............
He is my sweater in my winter.
He is my cool wind in my summer.
He is my umbrella in my rain.
.............
He loves me as my mother.
He cares me as my brother.
He shares me as my sister.
He helps me as my friend.
Whole relationship of world I have found in his one relation that is so special to me.
....................
His voice is sweeter than voile n.
His tears are more real than pearl.
His eyes are more shiner than diamond.
His thinking is more deep than sea.
&
His heart is more true than God.
..................
Every red rose of world is my gift for him.
Every lovely song of world is my feeling for him.
Every joy & happiness of world is my prayer for him.
Every true word of world is my promise for him.

now nothing to say except this....
that I love him.
I am dedicated to him.


- Ekta Nahar

एक बार तो उस शख्स को आजमाना चाहिए था

         गजल 
तन्हा नहीं कटते ज़िन्दगी के रास्ते,
हमसफ़र किसी को तो बनाना चाहिए था !!
शब् के अँधेरे गहरे थे बहुत,
मेरे लिए रौशनी किसी को तो जलाना चाहिए था !!
रोते हुए दिल की बात वो समझ ना सके,
शायद आँखों को भी आँसू  गिराना चाहिए था !!
यूँ ही ऐतवार कर बेठे एक अजनबी पर हम,
एक बार तो उस शख्स को आजमाना चाहिए था !!
   
    -  एकता नाहर 

दुआ..

               दुआ..

                उठे हैं जो हाँथ आज दुआओं में तो मत रोको,
                बिखरी हूँ मैं मुझे...पनाहों की जरुरत है....
                ईश्वर की गोद तो सूनी है मुझे सुलाने के लिए,
                मेरे ही समर्पण और दुआओं की जरुरत है !!
 हे ईश्वर,
     मैं सच्चे और पवित्र मन से आपकी आभारी हूँ कि आपने मुझे दुनिया में रहने लायक बेहतर जगह प्रदान की! मुझे इस काबिल बनाया कि मैं अन्याय से लड़ सकूँ! मुझे इतना शक्तिशाली बनाया की में हर परिस्थिति में खुद को सम्हाल सकूँ, हर गलत काम का विरोध कर सकूँ!
             दुनिया में छल, कपट, बेईमानी, धोखा, कायरता, स्वार्थ होने के बाबजूद मुझे प्यार, अहिंसा,न्याय, सच्चाई और अच्छाई जैसी शक्तियाँ प्रदान की! मुझे प्राणिमात्र से आत्मीयता का भाव रखना सिखाया! मुझे हर पल मुस्कुराना और हर दिन जीना सिखाया! मुझे इस लायक बनाया कि मैं अपनी हर जरुरत पूरी कर सकूँ! मेरे अन्दर इतना प्यार दिया कि कभी मुझे प्यार की कमी महसूस न हो! मुझे फैसले लेना सिखाया उन फैसलों पर आगे बढ़ना सिखाया!
           मुझे सपने देखने की ताकत दी और उन सपनों को पूरा करना सिखाया! प्रकृति को इतना खूबसूरत बनाया की मुझे इसके हर रूप, हर रंग से प्यार हो गया! मुझे कुदरत से बातें करने,जुड़ने और समझने का मौका दिया! मुझे मुझसे जुड़ने और मुझे समझने का हौसला दिया!मुझे दर्द झेलने की शक्ति दी! और हर पल से अनुभव लेना सिखाया!            
 मेरी आपसे यही प्रार्थना है की मेरे मन को हमेशा पाक रखना! मेरे अन्दर की पवित्रता और मासूमियत को हमेशा जिन्दा रखना!मेरी हर सोच को सही दिशा प्रदान करना! मुझे सारी बुराइयों से दूर नहीं बल्कि उनसे लड़ने की शक्ति प्रदान करना!
         मेरी नजरों को इतना दूरदर्शी और तेज बनाना कि मैं सारे गलत रास्तों को छोड़कर सही रास्ता चुन सकूँ! मुझे इतनी शक्ति देना कि जब मैं गलत करूँ तो खुद को बदल सकूँ और जब दुनिया गलत करे तो दुनिया को बदल सकूँ! आपने सही फैसले लेने की जो ताकत मुझे दी है, मैं उस पर अडिग रह सकूँ! मैं अपने नाम,अपनी पहचान को कायम रख सकूँ! मैं कुदरत से और भी ज्यादा गहराई से जुड़ सकूँ!
         मुझे इतना साहस देना कि मैं आपकी दी हुई शक्तियों का सही दिशा में असीमित प्रयोग कर सकूँ!मैं इस ख़ूबसूरत और खुशनुमा जिन्दगी के लिए आपकी शुक्रगुजार हूँ! दुनिया में रहने वाले हर प्राणी पर आपकी ऐसी ही कृपा होगी, इसी दुआ के साथ मैं अपनी भावनाओ को आपको समर्पित करती हूँ!!


       एकता नाहर 

मुद्दा मंदिर-मस्जिद का या मानवता का !!!

मुद्दा मंदिर-मस्जिद का या मानवता का !!

क्यों न अफ़सोस करूँ मै, अपने देश के हालात पर !!
यहाँ तो चलती हैं तलवारें, धर्म और जात पर !!


२४ सितम्बर को आने वाला संगीन फैसला तो टल गया, पर इस वजह से राहत की सांस लेने वाले कुछेक ही होंगे! मुझे यहाँ किसी मामले को स्पष्ट करने की जरुरत नहीं लगती, क्योंकि अयोध्या में चल रहे राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मामले से तो हर भारतीय वाकिफ है! फिर चाहे वह वे लोग हों, जिन्हें भविष्य में अपनी राजनीतिक यात्रा इसी फैसले पर करनी हो, या फिर वे लोग जिन्होंने ९२ में इस विवाद की आग में अपने परिवार को जलते हुए देखा हो, या फिर वे लोग जिनका देश में हो रहे इस अनौपचारिक और अनैतिक विवाद के प्रतिरोध में सिर्फ इतना ही योगदान हे की वे रेडियो और न्यूज़ चैनल पर हिंसा में भड़क रही इस आँच को चर्चा का विषय बनाते हो, तो कई ऐसे लोग भी हैं, जो मामले का मुद्दा भी नहीं जानते.... पर फैसले का इन्तजार सबको है और क्यों न हो आखिर इस फैसले पर ही तो टिका है भविष्य कुछ नेताओ का तो कुछ लाचारों का!!


                  मै यहाँ इस फैसले पर टिप्पड़ी नहीं करना चाहती, में तो बात कर रही हूँ उस भय और आतंक की जिसने लाखो दिलों को धड़का रखा है! अदालती फैसला चाहे जो भी हो,देश में तनाव और अशांति का वातावरण पैदा हो ही जाता है! लोग कर्फ्यू के नाम पर अपने घरों से निकलने में कतराते हैं! ऐसे हालातों में लोगों के दिलों में खौफ अपनी जडें मजबूत कर लेता है! फैसले का दिन आया और टल गया पर आजाद भारत से आजादी के कुछ दिन समेट ले गया और बदले में दे गया तनाव, दर और सनसनी खबरें! डरे और सहमे लोग टीवी पर से अपनी नजरें नहीं हटाना चाहते, फिर चाहे मीडिया मिर्च-मसालों के साथ दिल दहला देने वाले चित्र ही क्यों न प्रस्तुत करे! धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले इस देश में उन्ही धर्मो को विवाद का मसला बनाया जा रहा है!

                दंगो का कहर भले ही सारे देश पर हो, पर खामियाजा भुगतना पड़ता है निम्न और मध्यम वर्ग के हिन्दू-मुस्लिम समाज को.......घर जलते हैं उन लोगो के जो मंदिर और मस्जिद नही, सिर्फ अपने ही देश में जगह चाहते हैं और बर्बादी और तबाही में आबादी का जश्न मनाते हैं तो, राजनीति की आड़ में मानवीयता से खिलवाड़ करने वाले कुछ सामाजिक कार्यकर्ता! और सबसे बड़ा अफ़सोस तो यह है कि समाज और धर्म के नाम पर कुछ लोग जैसे चाहे वैसे देश को मोड़ रहे हैं और युवा वर्ग अपने घरों मै छिपकर बैठा है! क्योंकि २० सालों में जो परिवर्तन आया वह आज की युवा पीढ़ी में और जब युवा वर्ग ऐसे मामलों पर भी चुप्पी साधे हुए है, तो देश में ऐसी अमानवीय घटनाएं होना स्वाभाविक है! सवाल यह नहीं है कि यह देश क्यों ऐसे दुराचारियों के हाथों में है? सवाल तो यह है कि यह देश हम नौजवानों के हाथों में क्यों नहीं है? क्या हम नौजवान देश का सिर्फ भविष्य हैं,वर्तमान नहीं...जो खुद के बुढ़ापे के साथ देश के बुढ़ापे का इन्तजार कर रहे हैं? और ये भ्र्स्ताचारी देश की रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं!

           क्या कहूँ मै देश के इन शर्मनाक हालातों पर?????????
   इस देश के बारे में ना तो ये दिल सुनना चाहता है और ना ही देश की जनता! १९९२ मै जो हुआ वो असहनीय था, पर आज तो जागरूक होने का अवसर हमारे पास है! कब तक कुछ नारकीय दुष्ट...धर्म,समाज और राजनीति के नाम पर देश मै हिंसा,घ्रणा और असंवेदना फैलाते रहेंगे?....और कब तक हम युवा ऐसी ऐतिहासिक अनहोनी के इन्तजार मै अपने घरों मै छिपकर बैठे रहेंगे???

                 मेरी आवाज,मेरा आह्वान समर्पित है, देश के उन सभी लोगों को जिनके दिलों मै देशप्रेम की न सही मानवता कि भावना तो बरकरार है! जब इन हैवानो की बाजुओं में इतनी ताकत कि वे अपनी तलवार से समाज,कानून और देश की परवाह किये बिना संहार और विनाश का खेल रचते हैं, तो क्या हमारे जिगर में इतनी भी हिम्मत नहीं कि हम आह्वान से जागरूकता और परिवर्तन की और चलें? हमारे हौसले इतने कमजोर नहीं हैं कि तलवारों की तेज धारों से चकनाचूर हो जायें!

               जागो !!! युवाओं जागो ....सांप्रदायिक हिंसा का हिस्सा मत बनो!!! मेरे देश को तुम्हारे नेक इरादों,जोश और जूनून की जरुरत है!!

जागरूक युवा  जागरूक समाज  और जागरूक हिंदुस्तान !!
मेरा देश है मेरा गुरुर,  कोई धर्म नहीं मेरी पहचान !!

-एकता नाहर 

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