My sketchings

शायरी



                 तेरे प्यार मे कही हर गज़ल पर जमाना रुस्वाइयां देता था
               तेरे जाने के बाद ये मन्जर है कि खामोशी भी सबको शायरी सी लगती है
                             - एकता नाहर 

शायरी


हुनर की जब बात उठी है तो वो भी देखले
कौन कितने पानी में है, हो जाएँ फैसले
- एकता नाहर 

मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ

मैं साकार कल्पना हूँ
मैं जीवंत प्रतिमा हूँ
मैं अखंड अविनाशी शक्तिस्वरूपा हूँ


मैं जननी हूँ,श्रष्टि का आरम्भ है मुझसे
मैं अलंकार हूँ,साहित्य सुसज्जित है मुझसे

मैं अलौकिक उपमा हूँ
मैं भक्ति हूँ,आराधना हूँ
मैं शाश्वत,सत्य और संवेदना हूँ

मैं निराकार हूँ,जीवन का आकार है मुझसे
मैं प्राण हूँ,सृजन का आधार है मुझसे

मैं नीति की संज्ञा हूँ
मैं उन्मुक्त आकांक्षा हूँ
मैं मनोज्ञा मंदाकिनी मधुरिमा हूँ

मैं अनर्थ को अर्थ देती परिकल्पना हूँ
मैं असत्य अधर्म अन्धकार की आलोचना हूँ

मैं अनंत आकाश की अभिव्यक्ति हूँ
मैं सहनशील हूँ समर्थ हूँ,मैं शक्ति हूँ

मेरा कोई रूप नहीं दूसरा
मैं स्वयं का प्रतिबिम्ब हूँ
मेरा कोई अर्थ नही दूसरा
मैं शब्द मुक्त हूँ मैं पूर्ण हूँ
मैं नारी हूँ


-एकता नाहर 

A story behind my sketching...

A story behind my sketching...

sketching करना मेरे लिए एक प्रकृति प्रदत्त उपहार है !यह मेरे जीवन में बहुत ही रोमांचक और प्रशंसनीय अनुभव रहा है ! इसकी शुरुआत के पीछे  एक छोटी सी कहानी है !बात शायद २००३ की है....उस समय हिंदी फिल्म देवदास काफी प्रचलन में थी ! जिसमे ऐश्वर्या राय बच्चन का पहनावा और श्रृंगार एक बेन्गौली लड़की के रूप में था ! मैंने उसी getup में ऐश्वर्या का एक स्केच देखा ! उस समय ऐश्वर्या राय बच्चन, ऐश्वर्या राय हुआ करती थी ! मुझे बात समझने में थोड़ी मुश्किल लग रही थी की कोई किसी का चेहरा कैसे बना सकता है ! यह बात उस वक़्त मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं थी ! उससे पहले तक तो मैंने सिर्फ सिर्फ घर,गाँव, कार्टून,और गाँधी जी का ही फोटो बनाया था ! बस वही स्केच मेरी प्रेरणा बन गया और एक जज्वा और जूनून सा आ गया की मुझे भी किसी का चेहरा बनाना है...मैंने शुरुआत की एक बच्चे के चेहरे से ! बच्चो के चेहरे के हाव भाव मुझे हमेशा से ही लुभाते रहे हैं ! मेरी पहली कोशिश सफल रही......

उसके बाद मैंने कई अन्य sketch बनाए...
स्केचिंग करते अभी थोडा सा ही वक़्त गुजरा था कि अब जिद थी कि किसी सेलेब्रिटी की ही स्केच बनाना है...विशेषज्ञों का मानना है की किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए उस काम की बारीकियो को समझना बेहद जरूरी है...पर मेरे अन्दर हमेशा से ही धैर्य की कमी रही है...इसीलिए मैंने......
                               क्रमशः:
(अगले अंक में रूबरू मेरे स्केचिंग करने के दौरान आये उतार चढाओं से.)

**१८५७ की क्रांति**

हिंदी फिल्म knock out  के एक दृश्य में संजय दत्त द्वारा इरफ़ान खान को कहा गया कि २५० साल की हूकूमत में अंग्रेजो ने हमसे १ लाख करोड़ लूटा था और सिर्फ ६० साल में हमारे नेताओं ने हमसे ७० लाख करोड़ लूटा है ...
अगर ये बात सच है तो फिर क्या कहना मुनासिब होगा...???
क्या फिर से गांधी,सुभाष,भगतसिंह जैसी महान विभूतियों के पुनर्जनम की आवश्यकता है या हम ही कोई कदम उठायेगे...???

**१८५७ की क्रांति**

मैंने नहीं देखी १८५७ की क्रान्ति
पर देखी है देश मै फैली भ्रान्ति
सत्याग्रह आन्दोलन नहीं देखा
शायद दोहराएगा इतिहास अपना लेखा
आज फिर स्वदेश प्रेमी
सच्चे भारतीय
सच्चे देशभक्त
विद्रोह करेंगे
देश पे मरेंगे
पर यह विद्रोह नहीं होगा औरों से
यह विद्रोह होगा देश के सत्ताखोरों से
आज हर आम व्यक्ति गांधी होगा
जो लडेगा अधिकारों के लिए
बनेगा सजा गुनाहगारो के लिए
अब हिन्दुस्तानी लडेगा हिन्दुस्तानी से
क्रांति की ये अग्नि नहीं बुझेगी पानी से
हर युवा सावधान होगा
जाग्रत होगी नयी ज्वाला
शायद फिर एक १८५७ की क्रान्ति
बदल दे कल आने वाला

--एकता नाहर 

चाटुकारिता - सफलता का नया मूलमंत्र

चाटुकारिता - सफलता का नया मूलमंत्र 
(व्यंग्य) 

समाज में कैसे बदलाव आयेगा यह कह पाना तो मुश्किल है पर सच तो यह है कि सफलता जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही महत्वपूर्ण यह बात भी कि वह कैसे और कहाँ से मिलती है ! चाटुकारिता से सफलता के वृक्ष में डालियाँ तो आ सकती हैं पर ये डालिया लम्बे समय तक वृक्ष को हरा भरा नहीं रख सकती क्योकि सफलता का मूल को तो परिश्रम और हुनर से ही सींचा जा सकता है !
   -एकता नाहर 


चाटुकारिता विभिन्न गुणों से समाहित सफलता का खरा मूलमंत्र है ! ऐसा नहीं है कि आपको इसके लिए परिश्रम नहीं करना पड़ता ! आपको अपने लक्ष्य निर्धारित करने पड़ते हैं, अपने से उच्च अधिकारियों के इर्द-गिर्द घूमना पड़ता है , उन्हें अपने जिम्मेदार,परिपक्व और कुशल होने की अनुभूति करानी होती है! साथ ही उन्हें सम्मान के सर्वोच्च सिंहासन पर आसीन कराना होता है ! यह सारी क्रियाएं जितनी रफ़्तार से होती हैं उसी के अनुरूप सफलता भी अपनी प्रतिक्रियाएं देती है ! हाँ, चाटुकारिता के इस सिध्दांत में नियमो कि कोई व्याख्या नहीं होती ! इसे सब अपने-अपने अनुसार इस्तेमाल करते हैं!चाटुकारिता और सफलता एक दुसरे के समानुपाती चलते हैं...यह बिलकुल भौतिकी के सिध्दांत की तरह कार्य करता है!
                                         सफलता के व्यवसाय में जितनी चाटुकारिता रुपी पूँजी निवेश करेंगे उतनी ही सफलता मिलेगी! पर सफलता कभी पर्याप्त नहीं होती..इसीलिए चाटुकारिता भी कभी कभी अपने असीम छोर को छू लेती है ! चाटुकारों का मानना है कि यह कोई घाटे का सौदा नहीं है! हाँ जब कभी इस व्यवसाय के तराजू में असंतुलन हो जाता है!अधिकतम चाटुकारिता निवेश करने पर भी सफलता के परिणाम सामने नही आते !पर समयानुसार ये उतार चदाव भी स्थिर हो जाते हैं !सबसे अच्छी बात तो यह है कि इसे सीखने में समय भी खर्च नहीं करना पड़ता !सभी अपने अपने स्तर पर सफलता के रूप को चाटुकारिता के रंग से निखारने में लगे रहते हैं ! आलम यह है कि छोटे-छोटे देश भी अमेरिका जैसे बड़े देशो कि चापलूसी में लगे रहते हैं !
                                         चाटुकारों में आत्मविश्वास का कतई अभाव नहीं होता! वे अपने से उच्च अधिकारियों को प्रभावित करने के हर हथकंडे अपनाते हैं ! दिलचस्प बात तो ये है कि वे व्यक्ति को चरित्र के अनुसार नहीं बल्कि उनके पद के अनुसार उनके सम्मान का स्तर निर्धारित करते हैं ! वे खुद को एक अच्छे और सच्चे सहयोगी साबित करने में माहिर होते हैं ! वे इस बात को भलीभाँति समझते हैं कि अपने से उच्च अधिकारियों से व्यवहार बनाकर ही मनोवांछित कार्य किये जा सकते हैं और भविष्य को लाभान्वित किया जा सकता है ! वे समय की जरूरतों के मुताबिक अपनी कार्यशैली में परिवर्तन भी करते रहते हैं ! वे उदासीन और अंतर्मुखी कदाचित नही होते ! वे यह समझने में बड़े ही बुध्दिजीवी होते हैं कि उनकी सफलता का निर्णय किसके हाथ में है ! जब उन्हें एक पक्ष से संतुष्टि नहीं होती तब वे किसी दुसरे पक्ष को तलाश करते हैं !
                                          मजे की बात तो यह है कि सफलता के धंधे में इतनी चाटुकारिता निवेश करने के बाद भी कोई अपने आप पर  ' चाटुकार ' का लेवल नहीं लगवाना चाहता ! वे इस धंधे में अपना नाम हमेशा गुप्त रखने की कोशिश करते हैं ! वे चाटुकारिता की नीति के तहत गुप्त रूप से ही सफलता के पक्ष में अपनी याचिका लगाते हैं !
                                आधुनिक युग में चाटुकारिता चुम्बक की तरह सफलता को निरंतर अपनी और आकर्षित कर रही है ! वर्तमान हालातों की समीक्षा करें तो चाटुकार अल्पसंख्यक नहीं हैं ! यह व्यवसाय राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है! यह राजनीति की तकनीक ही है जिसका इस्तेमाल लोग उपलब्धियां हासिल करने में करते हैं ! वर्तमान में ' परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ' का स्थानान्तरण ' चाटुकारिता ही सफलता की कुंजी है ' से होता जा रहा है !हर तरफ लोग मेहनत, लगन और ईमानदारी से काम करने की बजाय चाटुकारिता को निचोड़ कर सफलता का रस चखना चाहते हैं ! समाज में कैसे बदलाव आयेगा यह कह पाना तो मुश्किल है पर सच तो यह है कि सफलता जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही महत्वपूर्ण यह बात भी कि वह कैसे और कहाँ से मिलती है ! चाटुकारिता से सफलता के वृक्ष में डालियाँ तो आ सकती हैं पर ये डालिया लम्बे समय तक वृक्ष को हरा भरा नहीं रख सकती क्योकि सफलता का मूल को तो परिश्रम और हुनर से ही सींचा जा सकता है !
-एकता नाहर

शायरी



           न करते ग़ुरूर हम भी यूँ अपने हुस्न पर
          ग़र ज़लवे हमारे देखकर वो मदहोश न होते
            -एकता नाहर 

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