I wrote this poem in 8th class....
नई सोच और नई आशाये चलती हू मै रचने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
मेरा मन भी कहता है मैं भी अपने भाव लिखूँ
अपनी वेदना अपनी पीड़ा कागज कलम के साथ सहूँ
फिर आज कलम में उठती हूँ अपने घाव भरने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
ना रांझा ना हीर की ना ही अर्जुन के तीर की
सबसे पहले में लिखूँ गाथा देश के वीर की
अपना द्रष्टिकोण अपने विचार दो शब्दों में रंगने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
दिल मे बस यही है ख्वहिश मै कुछ ऐसा प्रयत्न करू
न तलवार से न बन्दूक से बस कलम से मै जंग लडू
जिसने जोश दिया था सबको फ़िर वही वन्देमातरम रचने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
-एकता नाहर सबसे पहले में लिखूँ गाथा देश के वीर की
अपना द्रष्टिकोण अपने विचार दो शब्दों में रंगने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
दिल मे बस यही है ख्वहिश मै कुछ ऐसा प्रयत्न करू
न तलवार से न बन्दूक से बस कलम से मै जंग लडू
जिसने जोश दिया था सबको फ़िर वही वन्देमातरम रचने को
अपनी कलम से सागर न सही दिलो का प्याला भरने को
November 16, 2010 at 11:41 AM
सुन्दर रचना.
बाल मन की सहजता के साथ-साथ इसमें वो स्वप्न भी है जो अक्सर छोटी उम्र में सजाए जाते हैं. राष्ट्र सर्वोपरि रहता है.
लेकिन वक्त से साथ ये भावना क्षीण पड़ती चली जाती है. कामना करता हूं कि आपके साथ ऐसा न हो.
शुभकामनाएं, आगे भी इसी तरह लिखती रहें
November 27, 2010 at 1:04 AM
very nice,,,,,,,,,,
November 14, 2011 at 7:01 AM
very good work.